Friday 1 February 2013

आज कोई कृष्ण-महादेव नहीं |


।। चमकते भाल पर वर्तमान के, काली स्याही झलक रही।।

पुत्रमोह की धृतराष्ट्र है संज्ञा, बनी रही है बनी रहेगी
प्रकृति के सोपानो पर, अजब गजब इतिहास लिखेगी |
आँखों से अंधा चल लेता है, मोह में अन्धा विनाश बुलाता |
अभ्युदय के हर काल खंड में, मोह सबसे बड़ा है धन्धा |
एक धृतराष्ट्र के मोह ने भाई, युग परिवर्तन की नीव रखी |
इसी पुत्र मोह ने, ज्ञानी दशरथ के प्राण हरे |
मोह के प्यासे खप्पर को, लहू संसार का कम ही पड़ता है |
 जितने कौरव द्वापर में हुए थे, उतने आज धृतराष्ट्र हुए हैं |
समय के स्पन्दन में कम्पन्न है, समय की धड़कन बहक गई |
चमकते भाल पर वर्तमान के, काली स्याही झलक रही |
थमी जो साँसे आक्रोशित हैं, षड्यंत्रों की वर्षगांठ पर |
षड्यंत्रों की लीला से, लीलाधर खुद विस्मित-विस्मित से |
एक मूल्य चौसर पर लगा था, महाभारत उपादान में दे गया
हर मूल्य आज चौसर की चौखट पर, क्या क्या उपहार वो देंगे |
द्व्वापर के स्वामी तो कान्हा थे, वहशत स्वामिनी आज हुई है
कितने लहू से प्यास इस चौसर की बुझेगी, समय सोच कर काँप रहा |
द्व्वापर में कान्हा साथ समय के, शिव ने मंथन का जहर पिया |
समय आज पीड़ित उस भय से, मन ही मन वो मरा मरा सा |
हर युग का एक सूत्रधार हुआ है, आज कोई कृष्ण-महादेव नहीं |
अनाथ-समय निर्णय अब कैसे लेगा, धरा के सामने प्रश्न यही है।


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