निराशा का माहौल
बनाकर ,प्रगति प्रतिवेदन ना
भर पाओगे,
असुरक्षित जीवन देकर
कैसे,प्रतिस्पर्धी तुम
हो पाओगे,
बातें बड़ी बड़ी
बस करते,कम
तनिक ना कर
पाते,
जिम्मेदारी से बचने
की खातिर,कितना
भी कुत्सित हो
कर जाते,
भाग्य विधाता होने
का अहम् तुम्हारा,
मानव कब तक
ये भुगतेगा,
डरे हुए
इतने तुम हो
की,अपनी ही
आहट से डर
जाते,
नीति का
हर दामन तुमने,दागों से परिपूर्ण
किया,
कैसे भरोसा
हो मानव का,झूठ सरासर
तुम दे जाते,
अपराधी का महिमा
मंडन तुम करते,स्वयं के ईमान
से शर्माते,
अपने ही
डर की गिरफ्त
में रह कर,
बहनों पे डंडे
बरसाते,
विरोधी देशभक्त को
कहते हो,स्वयं
के विरोध से
डरते हो,
कितने असहाय बेचारे
तुम हो, अपना
ही द्वन्द न
सह पाते,
कुछ मत
बोलो मौन रहो
तुम,चेहरा सब
कुछ कह देता
है,
अपनी ही
दुर्बलता परोसने का साहस,
भला तुम कैसे
कर पाते.
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