नाक के नीचे कर गए काण्ड जघन्य वो, देते चुनोती सम्पूर्ण व्यवस्था की शान को,
फिर भी देखो साहस है कैसा , हमारे इन माननीयों का,
मुस्कुराकर वक्तव्य दे रहे, मर चुकी मानवता की लाश पर,
अपने झगड़ों में रहते हैं, अपनी मस्ती में वो जीते हैं,
आग लगी देश में पर, अपनी जिम्मेदारी ना कहते हैं,
इस्तीफा ना दिया किसी बात पर, आरोप कह झुठला दिया ,
इस थप्पड़ की गूँज को , अभी भी वो सुन ना पाए हैं,
वरना त्यागपत्र दे दिया होता, एक मासूम जिंदगी के नाम पर।
No comments:
Post a Comment