Wednesday 13 February 2013

'''' अलमस्त ग़ालिब "" के शहर में दूसरा ग़ालिब आज तक नहीं हुआ

क्या विषय वस्तु का आभाव है ? या सृजक डरा हुआ है ?
लेखन की अजीब सी खोखली सी परम्परा चल पड़ी है, कभी महात्मा गांधी पर विवादास्पद टिपण्णी तो कभी नेताजी को फासिस्ट का वाहक , तो कभी प्रेमचंद्र पर कुठाराघात , क्या कुछ स्वयं सोच कर लिख नहीं पाते,  जब आसानी से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का फ़ायदा उठा कर प्रसिद्ध होने का अवसर मौजूद हो तो मेहनत कौन करे ?
देश , काल,परिस्थिति के आधार पर ही निर्णय लिए जाते हैं जो भूतकाल में लिए गए, उन पर  विवादास्पद टिपण्णी उन फैसलों को बदल तो नहीं सकती तो फिर ओचित्य सिर्फ और सिर्फ प्रसिद्धि पाना ही तो रह जाता है।
आदर्श इंसान बनना है तो क्या स्थापित आदर्श इंसानों पर उंगली उठा कर ही रोल मॉडल बना जा सकता है क्या ?
स्वयं को प्रस्तुत करने से डरने वाला साहित्य या इसका सृजक किस तरह समाज में देश,काल,परिस्थिति के अनुसार सही निर्णयों का मार्ग प्रशस्त करेगा ये तो समय ही तय करेगा या फिर ऐसा करने वालों के प्रति समाज की असहमति ।
शायद यही कारण है की '''' अलमस्त ग़ालिब "" के शहर में दूसरा ग़ालिब आज तक नहीं हुआ ?
https://www.facebook.com/pages/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5-%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-/126453744196967

No comments:

Post a Comment