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बेटी हो तुम सह जाती हो, मुख से
कुछ ना कहती हो,ह्रदय पिता का विदीर्ण ना हो, सदा भाव ये रखती हो,
क्यों सहती हो इतना सब कुछ, मुस्काती हर पल तुम हो,
पिता को कुछ एहसास ना होगा, ऐसा तो ना हो पाता है,
ह्रदय जो अविरल धड़कता तुम है , मेरा ही तो सर्वोत्तम हिस्सा है,
जो सहती प्रतिपल जग में तुम हो, महसूस उसे कर लेता हूँ,
दर्द के सागर पे लहराती , मुस्कान तेरी पढ़ लेता हूँ,
मात्रत्व भाव से पिता को सहेजती , ये भी खूब समझता हूँ,
"बेटी ' हूँ मैं पिता तुम्हारा ,कह कुछ भी नहीं पाता हूँ,
दुःख के दारुण भंवर में रह कर , जीवन की रचना करती हो,
नमन मेरा स्वीकार करो तुम, मातृत्व भाव से सज कर तुम
"पिता" को "परी" ही लगती हो।
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