Wednesday 13 February 2013

चारों धाम से गोकुल न्यारा

दागिओं को तो कहीं भी मान्यता नहीं मिलती और ना ही कोई देता है जबरियन डंडे की दम पर हाँ कहलवाना हो तो बात अलग है,
कैसी छवि हमें अपनी बनानी है ये तो निहायती व्यक्तिगत बात है, समाज व्यर्थ ही अपच का शिकार हो जाए तो कोई क्या करे ?
 "" बच्चे को टॉफी दो तो बच्चा समझ ही लेता है की राजी राजी ब्लैकमेल हो जाओ वरना डंडे का स्वाद तो चखना पडेगा "" मजबूरी के घेरे में बंद आम आदमी की नियति तो आम ही हुआ कराती है।
रही बात फंसाए जाने की तो ये तो एक प्रचलित मुहावरा है, प्रयोग करता को सम्पूर्ण अधिकार है चाहे जैसे प्रयोग करे , ये अलग बात है की श्री राम मनोहर लोहिया और लोकनायक को सम्पूर्ण व्यवस्था सम्पूर्ण ताकत लगा कर भी फंसा नहीं पाई .
फंसाए गए लोग जिस तरह फंसे हुए समाज का निर्माण कर रहे हैं एक दिन उन्हें इसी फंसी व्यवस्था में फंस जाना होगा ये अलग बात है।   हम तो यही कह सकते हैं चारों धाम से गोकुल न्यारा --------

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