Friday 1 February 2013

-" पिता "



कैसे सहूँ मैं पिता तुम्हारा , रोकूँ खुद को कैसे मरने से
पग पग रंग भरे अपने सपनों से,बेटी के हर सपने मैं
बेटी होती जान पिता की , मान और अभिमान पिता की,
कहने का ना साहस अब है, जीने की तो बात अलग है
मेहंदी रचे तेरे हाथों में ,सपना होता हर पिता का भर है
वीभत्स प्रलयकारी ये पल है,ज़िंदा हूँ पर मरा हुआ सा
कह नहीं पाता रो नहीं पाता ,मर जाऊं तो मर नहीं पाता
बिखरा बिखरा खुद हो कर भी, सम्भाले जग को तन,मन,धन से
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