‘’ यूँ जबरियन पत्थर ना फेंकों ‘’
जैसे तुमको रहना है रहते हो
जो करना वो भी करते हो
कोशिश बांटने की भी करते हो
फार्मूले हम पर ना फेंकों
जन मानस अब तुम्हे समझता
गंगा से पावन जन मानस पर
यूँ जबरियन पत्थर ना फेंकों
नये युग का प्रहरी मान कर
सम्मान दिया अभिमान दिया
बदले में क्या – क्या तुम देते हो
एक बार खुद से बस पूछो
No comments:
Post a Comment